भोजन के सन्दर्भ में एक बात ध्यान देने की है कि भोजन यदि अच्छी मनःस्थिति से बनाया जाता है तो वह स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है अन्यथा वह केवल पेट भराऊ हो जाता है। जिस दिन गृहणी के मन में कोई क्लेश हो वह भोजन स्वादिष्ट नहीं होता है। बाजारों में बनाया गया भोजन केवल धन अर्जन के उद्देश्य से बनाया जाता है। इसलिए यह पौष्टिक नहीं होता है। माता के हाथ का बनाया गया भोजन सबसे अधिक स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है क्योंकि माता पूर्ण स्वस्थ मनोयोग के साथ अपने परिवार बच्चों के लिए बनाती हैं।
भोजन जीवधारियों के शरीर की प्रथम आवश्यकता है चूँकि मानव अपने भोजन में चयन कर उसकी पूर्णता की क्षमता से परिपूर्ण हैं। अलग-अलग संस्कृतिओं और क्षेत्रों में भोजन चयन कर भिन्न-भिन्न स्वरूप हैं। श्रीमद्भगवतगीता में भोजन के चार प्रकार बताये गये हैं-1. पेय, 2. चर्वण, 3. लेहा, 4. चोष्य आदि। इसी ग्रन्थ में भोजन को गुणों के आधार पर, तीन प्रकार का बनाया गया है- 1. सत गुणी 2. रजो गुण, 3. तमोगुणी,-(17/8-20)
भारत में ऋतुएँ भोजन पर अपना प्रभाव डालती हैं। ग्रीष्मकाल में हल्का सुपाच्य, पेय भोजन ज्यादा पसन्द किया जाता है। वहीं वर्षा ऋतु में सब्जियों का प्रयोग कम किया जाता है। क्योंकि इन दिनों पत्तेदार सब्जियों आदि में कीट प्रकोप रहता है तथा मक्खी मच्छरों की संख्या अधिक होती है इसलिए शाम का भोजन दिन छिपने के पूर्व आचार या दूध-दही के साथ लिया जाना उचित रहता है। शीत ऋतु में चटपटे व्यंजनों का सेवन अधिक होता है।
भोजन के सन्दर्भ में एक बात ध्यान देने की है कि भोजन यदि अच्छी मनःस्थिति से बनाया जाता है तो वह स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है अन्यथा वह केवल पेट भराऊ हो जाता है। जिस दिन गृहणी के मन में कोई क्लेश हो वह भोजन स्वादिष्ट नहीं होता है।