भोजन की याचन पूर्ति के लिये तो यह भी कहा गया है


न वा उ देवाः क्षुधमिद्वधं ददुरूताशितमुप गच्छन्ति मृत्युवः। उतो रपिः पृणतो नाप दस्यत्युतापृणन् मर्दितारं न विन्दते।। य आध्राय चकमानाय पित्वो डन्नवान्त्सन रकितायोपजुग्मुषे स्थिरं मनः कृणुते सेवते पुरोतो चित् स मर्डितारं न निन्दते


भोजन की याचन पूर्ति के लिये तो यह भी कहा गया है-


ग्रासाद्र्धमपि ग्रासमर्थिम्यः किं नदीयते।


आजकल अन्न भण्डारण काला बाजारियों द्वारा किया जाता है श्रीमदभागवत 7/14/8 में कहा गया है-


मानद भ्रियेत जठरं तावत् स्वत्व हि देद्विनाम्। अधिकं योडमिमन्येत स स्तेनो दण्डमर्हति।।


जितने अपने उदर पूर्ति हो उतने ही अन्न पर अपना अधिकार है


भूखे व्यक्ति को अन्न भोजन खिलाने तथा प्यासे को दानी पिलाने में विलम्ब व विचार नहीं करना चाहिए-


न हि कालं प्रतीक्षत जतं दातुं तृषान्यिते। अन्नोदकं सदा देयनित्याह भगवान अनुः।।विष्णु धर्मोत्तर पुराण 112/10


भूखे को भोजन देने के लिये महाभारत अनुशासन पर्व कहा गया है-


सर्वेषामेव दानानामन्नं श्रेष्ठ मुदाहृतम् तं हि प्राणस्य दातारस्तेम्यो धर्मः सनातनः।


ब्रह्मपुराण 218/26-27 में भोजन देने वाले कह गया-


 अन्नस्य प्रदानेन नरो याति परां गतिम


वराहपुराण में भोजन अन्न देने वाले कही गई है। महर्षि संवर्तजी ने कहा है- सर्वेलाभेव दानानामन्नदानं पर स्मृतम्।


अतिथि देवो भवः के भाव परिपूर्ण हमारी संस्कृति में ब्रह्मणों, अतिथियों या याचकों की स्वागत व भोजन में क्या पदार्थ हो किस महीने में कौन सा भोज्य होना चाहिये यह भी स्पष्ट है।


 चैत्र मास में गोधूम, अरहर, दही-चावल, बेल फल, आम आदि से तृप्त किया जाये-भविष्यपुराण। बैसाख मास में जौ के सत्तू, तक्र, विविध प्रकार के पेय अवश्य ही भोजन में होने चाहिए। जेष्ठमास के दही व भात का आहार हो आसाढ मास में आँवला का मुरब्बा या अचार, श्रावण खीर, भाद्रपद में खीर पुआ, अश्विन में पितृपक्ष व शारदीय नवरात्रि होती है जो श्राद्ध के निमित्त भोजनबना हो उस में तप्त किया जाय, नवरात्रि में हलुआ, खीर, चना का आहार हो कार्तिक मास में अनेक त्यौहारों के मिष्ठान से भोजन हो, अग्रहण्य में गुड का सेवन किया जाये, पौष माघ मास से मेवो, गुड़, बाजरा का मलीदा, मूंगफली, तिल, खिचड़ी आदि का भोजन होना अनिवार्य है। फाल्गुनमास में गुजिया, नमकीन, आदि का आहार होना चाहिए।


भोजन में वैविध्य होना अनिवार्य है, इसीसे आवश्यक पोष्टिक तत्व शरीर को प्राप्त होते हैं। महाभारत में पितामह भीष्म और युधिष्ठिर के संवाद का सार है कि कृर्तिक नक्षत्र स्पृतयुक्त, रोहिणी नक्षत्र-फल घी, दूध और पेय, आर्द्रा-तिल मिश्रित खिचड़ी, पुनर्वसु नक्षत्र में पुआ, मधा में तिल, पूर्वा फाल्गुन मक्खन मिश्रित भोजन, उत्तरा फाल्गुन में घी, दूध साठी के चावल, ज्येष्ठ नक्षत्र में शाक और मूली, उत्तरा षाढ़ा नक्षत्र में सत्तू, अभिजित नक्षत्र मधु, घृत, दुग्ध, पूर्वा भाद्रपदा नक्षत्र में उड़द, सफेद मटर का आहार विशिष्ट लाभप्रद होता है।


भोजन- अन्न और जल का मिश्रित नाम है। पृथ्वी पर तीन रत्न हैं, अन्न, जल और सुभाषित। भोजन बनाना कला है और पचाना विज्ञान है। भोज्य-उत्पादन, संवर्धन, संरक्षण, सुव्यस्थित वितरण, गृह और राष्ट्र के लिए आवश्यक वैदिक वाङमय में इस विषय पर विस्तार से विमर्श किया गया है। प्रश्नोपनिषद 2/15 में कहा गया है- अन्नं वै प्रजापतिः तैत्तिरीयोपनिषद 2/2/1 में कहा अन्नाद्वै प्रजाः प्रजायन्ते। यः काश्च पृथिवी श्रिताः अथो अन्नेनैव जीवन्ति। --- अन्नं हि भूतानां जेष्ठम् तदमात्सर्नोषध्मुच्यते अन्नं ब्रह्मति व्यजानात्।अन्नाद्धचेव खल्विमानि भूतानि जायन्ते। अन्नेन जातानि जीवन्ति। अन्नं प्रयन्त्यभिसंविशन्ति। तैत्तिरीयोजनिषद 3/2/1


अन्नं न परिचक्षीत। यद् व्रतम्। अन्नं बहु कुर्वीत तद् व्रतम् तैत्तिरीपोपनिषद 3/8/1, 3/9/1


भोजनान्न वितरण के विषय में ऋग्वेद धनान्नदान सूक्त 10/117/6 में कहा गया है-


भोधमन्नं विन्दते अप्रचेता सत्यंतनीमि वध इत स तस्य केललाधो भवति केवलादि


शिवपुराण उ. सं 12/1, 12/17-18, 24, 29, 30, कूर्म पुराण उ.वि. 26/17, 44, ब्रह्मपुराण, अग्निपुराण 211/44-46 वराहपुराण अध्याय-206 वामनपुराण 94/22, 36 मत्स्यपुराण 83/42-43, पद्मपुराण उत्तरखण्ड, भविष्यपुराण अध्याय-169, स्कन्दपुराण का पू. 38/37, गरुडपुराण 2/4/7-8, नारदपुराण आदि अन्न तृप्ति का विवरण दिया गया है।


भारतीय घरों में भोजन का स्वरूप इतना बदल गया कि सुबह का कलेऊ छाछ, हलुआ, परांवठे, मोठ रमास चना और अंकुरित अनाज दाल कहीं भी चौके में खोजने पर ही मिलेंगे, चाय, ब्रैड, टोस्ट, मेगी, पास्ता, बिस्कुट, नमकीन आदि का कलेऊ अब होता है। मालावांचल से 'खाटी छा' मट्ठा और मक्की की रावड़ी कितने लोग खा पा रहे हैं, चूला, लकड़ी, बडीता, कंडा तो संग्रहायलों में देखे जाने की स्थिति प्राप्त कर चुके हैं, मोटे आनाज-जौ, ज्वार, मक्का, बाजरा, आदि कितने चौके में दिखेंगे। वेजर-(जौ, गेहू, चना, मटर) का आटा कितने लोगों के भाग्य में बचा है। मिस्सी रोटी के नाम पर क्या खाते हैं पता नहीं। पर अब पनफसी रोटी महानगरीय ही छोटे नगरों की भी बहनें नहीं बना पायेंगी। 'बैड टी' के साथ आज के कान्हा और राधिका उठते हैं। 'कुककुट फल' अण्डा के साथ ब्रेकफास्ट होता है, क्योंकि रोज खाओ अण्डे का विज्ञापन देखा है। शिक्षा पाठयक्रम में जीव हिंसा और मांसाहार का विरोध पढ़ा ही नहीं है, आज के डॉक्टर के कहने पर शाकाहार का विचार होता है क्योंकि हृदय और रक्तचाप आदि रोग हो जाते हैं। कभी भारतीय सनातन ग्रन्थों- वृहदपरासर स्मृति, श्रीमद्भागवत 7/15/7, मनुस्मृति 4/46-47 हेमाद्रि, कालामा., मदनरत्न, पृथ्वीचं., स्मृतिरत्नावली, दिवोरा., प्रका., दीपिका विवर., श्राद्धकल्प लता आदि-अवलोकिक किया होता तो अभच्क्ष्य भक्षण से बचा जाता। पर यह पोंगापंथी हो जाती।