जिस बुलंद हौसलों के साथ भारतीय वैज्ञानिकों ने चंद्रमा को अपने आगोश में लेने के लिए मिशन "चंद्रयान-2" की चांद पर सफल लैन्डिंग कराने का प्रयास किया वह काबिलेतारीफ है। देश की जनता इसरो के सभी वैज्ञानिकों व कर्मचारियों के बुलंद हौसलों को नमन करती है।
भारत की शान "भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन" (इसरो) के वैज्ञानिकों के लम्बे अथक प्रयास से चलाये गये पूर्ण रूप से स्वदेश निर्मित तकनीक पर आधारित "मिशन चंद्रयान-2" में भारत गत शुक्रवार की रात इतिहास रचने से मात्र दो क़दम दूर रह गया। अभियान के अंतिम समय पर अगर लैंडर विक्रम से इसरो के वैज्ञानिकों का संपर्क बना रहता और सब कुछ ठीक रहता तो आज भारत दुनिया पहला ऐसा देश बन जाता जिसका अंतरिक्ष यान चन्द्रमा की सतह के दक्षिणी ध्रुव के क़रीब उतरता।
इस मिशन पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के. सिवन ने इसरो के वैज्ञानिकों का लैंडर विक्रम से संपर्क टूटने का ऐलान करते हुए कहा कि चंद्रमा की सतह से 2.1 किमी पहले तक लैंडर विक्रम का काम वैज्ञानिकों की प्लानिंग के मुताबिक सफलतापूर्वक चल रहा था। उन्होंने बताया कि उसके बाद लैंडर विक्रम का संपर्क टूट गया हैं। हम उसके डेटा का विश्लेषण कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस ऐतिहासिक क्षण का गवाह बनने के लिए इसरो के मुख्यालय बेंगलुरु पहुंचे थे। लेकिन आख़िरी पल में मिशन चंद्रयान-2 का 47 दिनों का सफ़र अधूरा रह गया।
जबकि लैंडर विक्रम और रोवर पे-लोड लैंडिंग साइट के नज़दीक चन्द्रमा की संरचना समझने के लिए वहां की सतह में मौजूद तत्वों का पता लगाने और उनके वितरण के बारे में जाने के लिए व्यापक स्तर पर और इन-सिटु स्वर पर परीक्षण करता। साथ ही चन्द्रमा के चट्टानी क्षेत्र "रेगोलिथ" की विस्तृत 3-डी मैपिंग की जाती। चन्द्रमा के आयनमंडल में इलेक्ट्रान घनत्व (डेंसिटी) और सतह के पास प्लाज़्मा वातावरण का भी अध्ययन किया जाता। चन्द्रमा की सतह के ताप भौतिकी गुणों (विशेषताओं) और वहां की भूकम्पीय गतिविधियों को भी मापा जाता। इंफ़्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी, सिंथेटिक अपर्चर रेडियोमीट्री और पोलरीमिट्री की सहायता से और व्यापक स्पेक्ट्रोस्कोपी तकनीकों से चाँद पर पानी की मौजूदगी के ज़्यादा से ज़्यादा आंकड़े इकठ्ठा किए जाते। लेकिन अफसोस मिशन के अंतिम क्षणों कि लैंडर विक्रम से इसरो का संपर्क टूट गया और मिशन को अपने अंतिम चरण में सफलता की जगह विफलता हाथ लगी।